बिक्री (सेल्स) में सबसे ज़रूरी है यह समझना कि ग्राहक (कस्टमर) की असली ज़रूरत क्या है। लेकिन हर ज़रूरत एक जैसी नहीं होती। कुछ ज़रूरतें सिर्फ़ असंतोष (थोड़ा-सा मन न लगना) के रूप में होती हैं, जिन्हें इम्प्लाइड नीड्स कहते हैं। और कुछ ज़रूरतें साफ़ और मज़बूत होती हैं, जिन्हें एक्स्प्लिसिट नीड्स कहा जाता है।
जब तक इम्प्लाइड नीड्स को एक्स्प्लिसिट नीड्स में नहीं बदला जाता, तब तक ग्राहक खरीदने का निर्णय नहीं लेता।
इम्प्लाइड नीड्स (Implied Needs)
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यह बस असंतोष या हल्की समस्या होती है।
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ग्राहक को लगता है कि कुछ ठीक नहीं है, पर वह साफ़-साफ़ नहीं बता पाता।
उदाहरण:
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“हमारा सॉफ़्टवेयर धीमा है।”
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“बहुत समय मैनुअल काम में चला जाता है।”
एक्स्प्लिसिट नीड्स (Explicit Needs)
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यह साफ़ और मज़बूत ज़रूरत होती है।
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ग्राहक बताता है कि उसे किस तरह का समाधान चाहिए।
उदाहरण:
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“हमें तेज़ सॉफ़्टवेयर चाहिए।”
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“हमें ऐसा सिस्टम चाहिए जो शिकायतें जल्दी सुलझाए।”
खरीदार का सोचने का तरीका
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ग्राहक हमेशा तुलना करता है – समस्या की लागत बनाम समाधान की लागत।
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अगर समस्या का खर्चा ज़्यादा है और समाधान का कम, तो वह खरीदने के लिए तैयार हो जाता है।
बिक्री का असली काम है: ग्राहक के असंतोष (इम्प्लाइड नीड्स) को मज़बूत ज़रूरत (एक्स्प्लिसिट नीड्स) में बदलना।
फॉर्मूला आसान है:
👉 असंतोष → समस्या पहचान → समस्या का खर्चा > समाधान का खर्चा → मज़बूत ज़रूरत → खरीदारी
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